जब निकलता हू मैं अपने घरसे
मेरी आहटें तब पूछती है मुझसे
ऐ दोस्त मेरे, क्या करने चला है आज तू?
बस वही रुक पड़ते है मेरे कदम एक सोचसे,
क्या करे इस तबाही का हम!
क्यों सह ले भ्रष्ट लोगोंको हम!
क्यों ढूँढते है लोगों मैं बुराइयां हरदम
क्या खुद के घिरेबान में झाका कभी
छिपा लेते है जब अपनी गलतियाँ सभी
ना असलियत से दूर है हम
बस कहते है ”किस्मत के हाथों मजबूर है हम”
क्या मजबूरी, कैसी कमजोरी
इसी सोचसे तब घुटने लगता है दम
तभी एक आवाज़ पुकारती है हमे
सही सोच और राह दिखाती है हमे
उस सोच को पकडके चल पड़ते है हम
कुछ तो बदलाव जरुर लायेंगे ये थान लेते है हम
और तब दरवाज़े से निकलते है मेरे कदम….
भ्रष्टाचार
नववर्षाभिनंदन 2012
सलाम सरत्या वर्षाला… 2011
दिलेस तू सामर्थ्य आणि विश्वास, तेव्हा लढलो आम्ही भ्रष्ट व्यवस्थेविरुद्ध
दिलीस विचारांची ताकद, तेव्हा ओळखू शकलो सरकारची अयोग्य नीती
दिलेस तू Social Network चे हत्यार, तेव्हा भाग पाडले आमची मते ऐकण्यास
दाखवलीस नवी दिशा, तेव्हा वाटले नक्कीच येणारे वर्ष घेऊन येईल उज्वल भवितव्य
स्वागत नव्या वर्षाचे… 2012
संघटीत होऊन समाजकार्यासाठी झोकून देण्यास युवाशक्ती आता सज्ज
भ्रष्टाचारमुक्त भारत आमच्यासाठी यापुढे स्वप्न नव्हे वास्तव
या लोकशाहीची जनता खरी मालक हि खुणगाठ बांधून पक्की
मतांचे मोल जाणून नव्या वर्षात खरया लोकनायकाची निवड आता नक्की
नवीन वर्ष तुम्हाला धमाल सुखाचे जावो… 🙂
कहीं दूर जब दिन ढल जाए
अण्णा ना dedicate हिंदीतून चारोळ्या
कहीं दूर जब दिन ढल जाए …
भ्रष्टाचारका अंधेरा हर तरफ फ़ैल जाए …
ना जाने कहिसे, आशा की किरन बन के वो आए …
आंधी कहो या चमत्कार, अन्ना तो हमें दुसरे गाँधी नज़र आए …! अनमोल…